तुटले |
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आता आठवतायत ते फक्त काळेभोर डोळे... |
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बाकी सारे आकार, उकार, होकार, नकार... |
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मागे पडत चाललेल्या स्टेशनांसारखे |
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मागे मागे जात जात पुसटत चालले आहेत... |
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पुसत जावेत ढगांचे आकार |
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आणि उरावं एकसंध आभाळ, तसा भूतकाळ |
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त्याच्या छातीवर गवताची हिरवीगार कुरणं, |
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भरून आलेली गाफील गाणी, काळेसावळे ढग |
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आणि पश्चिमेच्या वक्षाकडे रोखलेले बाणाकृतीतील बगळे |
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आता आठवतायत ते फक्त काळेभोर डोळे... |
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बंध रेशमी तुझ्यासवे जे जुळले |
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अन् क्षितिजावर रंग नवे अवतरले |
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घन दाटताच एका क्षणात हे रंगबंध विस्कटले...तुटले.... |
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विसरत चाललोय... नावेतून उतरताना आधारासाठी धरलेले हात |
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विसरत चाललोय होडीची मनोगते, सरोवराचे बहाणे, |
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वा नावेला नेमका धक्का देणारी ती अज्ञात लाट |
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ती लाट तर तेव्हाच पुसली... मनातल्या इच्छेसारखी |
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सरोवर मात्र अजूनही तिथेच... |
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पण त्याच्याही पाण्याची वाफ किमान चारदा तरी आभाळाला भिडून आलेली |
आता तर लाटा नव्हे, पाणी सुद्धा नवंय कदाचित |
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पण तरीही जुन्याच नावाने सरोवराला ओळखतायत सगळे... |
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आता आठवतायत ते फक्त काळेभोर डोळे... |
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क्षण दरवळत्या भेटींचे, अन् हातातील हातांचे |
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ते खरेच होते सारे..वा मृगजळ हे भासांचे |
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सुटलेच हात आता मनात हे प्रश्न फक्त अवघडले...तुटले... |
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तुझ्याकडे माझी सही नसलेली एक कविता...मीही हट्टी... |
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माझ्याकडे तुझ्या बोटांचे ठसे असलेली काचेची पट्टी |
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चाचपडत बसलेले काही संकेत, काही बोभाटे...अजूनही... |
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थोडेसे शब्द, बरंचसं मौन...अजूनही... |
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बाकी अनोळखी होऊन गेलो आहोत... |
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तुझा स्पर्श झालेला मी, माझा स्पर्श झालेली तू... |
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आणि आपले स्पर्श झालेले हे सगळे... |
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आता आठवतायत ते फक्त काळेभोर डोळे... |
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मज वाटायाचे तेव्हा हे क्षितिजच आले हाती |
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नव्हताच दिशांचा दोष, अंतरेच फसवी होती... |
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फसवेच ध्यास फसवे प्रयास आकाश कुणा सापडले...तुटले... |
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उत्तरे चुकू शकतात, गणित चुकत नाही... |
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पावले थकू शकतात, अंतरे थकत नाहीत... |
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वाळूवरची अक्षरं पुसट होत जातात.. |
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डोळ्यांचे रंग फिकट होत जातात.. |
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तीव्रतेचे उग्र गंध विरळ होत जातात.. |
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शेपटीच्या टोकावरचे हट्ट सरळ होत जातात.. |
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विसरण्याचा छंदच जडलाय आताशा मला.. |
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या कवितांना, शहरभर पसरलेल्या संकेतस्थळांना... |
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विसरत चालल्या आहेत..पत्ता न ठेवता निघून गेलेल्या वाटा.. |
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विसरत चालले आहे तळ्यावर बसलेले पश्चिमरंगी आभाळ.. |
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अन् विसरत चालले आहे... |
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आभाळही गोंदायला विसरणारे हिरवेगर्द तळे |
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आता आठवतायत ते फक्त काळेभोर डोळे... |
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मी स्मरणाच्या वाटांनी वेड्यागत अजून फिरतो |
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सुकलेली वेचीत सुमने, भिजणारे डोळे पुसतो... |
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सरताच स्वप्न अंतास सत्य हे आसवांत ओघळले...तुटले... |
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आता आठवतायत ते फक्त काळेभोर डोळे... |
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