हे गंधित वारे फिरणारे |
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घन झरझर उत्कट झरणारे . . . |
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हे परिचित सारे पूर्वीचे . . . |
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तरी आता त्याही पलिकडचे . . . |
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बघ मनात काही गजबजते . . . |
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क्षणाक्षणाच्या दिव्यादिव्यातून अत्तर जळते रे |
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उमजत नाही ओढ कुणाची सुखवित सलते रे . . . |
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हे गंधित वारे फिरणारे घन झरझर उत्कट झरणारे . . . |
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कुठल्या देशी नकळत माझे पाऊल पडले रे |
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सूर रोजचे कसे नव्याने मनास भिडले रे |
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हे गीत जयाला पंखसुध्दा . . . |
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अन हवाहवासा डंखसुध्दा . . . |
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कधि शंकित अन नि:शंकसुध्दा . . . |
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क्षणाक्षणाच्या दिव्यादिव्यातून अत्तर जळते रे |
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उमजत नाही ओढ कुणाची सुखवित सलते रे . . . |
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हे गंधित वारे फिरणारे घन झरझर उत्कट झरणारे . . . |
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मनात जे जे दडून होते नकळत आकळते |
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कसे दुज्याच्या स्पर्शाने 'मीपण' झगमगते |
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ही जाणीव अवघी जरतारी . . . |
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हर श्वासातुन परिमळणारी . . . |
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हर गात्रातुन तगमगणारी . . . |
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क्षणाक्षणाच्या दिव्यादिव्यातून अत्तर जळते रे |
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उमजत नाही ओढ कुणाची सुखवित सलते रे . . . |
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हे गंधित वारे फिरणारे घन झरझर उत्कट झरणारे . . . |
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नाव न उरले, गाव न उरले, अवघे ओसरले |
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बेभानाचे भान जिण्याला बिलगुन बसलेले |
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हा स्पर्श विजेच्या तारांचा . . . |
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हा उत्सव बघ अस्वस्थाचा . . . |
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हा जीव न उरला मोलाचा . . . |
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क्षणाक्षणाच्या दिव्यादिव्यातून अत्तर जळते रे |
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उमजत नाही ओढ कुणाची सुखवित सलते रे . . . |
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हे गंधित वारे फिरणारे घन झरझर उत्कट झरणारे . . . |
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-संदिप खरे |
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