नसतेस घरी तू जेव्हा
Thursday, January 21, 2010
| नसतेस घरी तू जेव्हा | ||
| जीव तुटका तुटका होतो | ||
| जगण्याचे विरती धागे | ||
| संसार फाटका होतो | ||
| नभ फाटून वीज पडावी | ||
| कल्लोळ तसा ओढवतो | ||
| ही धरा दिशाहीन होते | ||
| अन् चंद्र पोरका होतो | ||
| येतात उन्हे दाराशी | ||
| हिरमुसून जाती मागे | ||
| खिडकीशी थबकुन वारा | ||
| तव गंधावाचून जातो | ||
| तव मिठीत विरघळणाऱ्या | ||
| मज स्मरती लाघववेळा | ||
| श्वासाविण ह्रुदय अडावे | ||
| मी तसाच अकंतिक होतो | ||
| तू सांग सखे मज काय | ||
| मी सांगू या घरदारा ? | ||
| समईचा जीव उदास | ||
| माझ्यासह मिणमिण मिटतो | ||
| ना अजून झालो मोठा | ||
| ना स्वतंत्र अजुनी झालो | ||
| तुजवाचून उमगत जाते | ||
| तुजवाचून जन्मच अडतो ! | ||


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